Current एवं Potential ट्रांसफार्मर क्या होते है ? संरचना एवं वर्किंग
Current एवं Potential ट्रांसफार्मर
आज के इस टॉपिक में हम Current एवं Potential ट्रांसफार्मर के बारे में समझेंगे जिसमे सबसे पहले हम यह समझेंगे की Current ट्रांसफार्मर क्या होता है इसकी संरचना एवं वर्किंग किस प्रकार की होती है इसके लिए Turn Ratio कैसे निकाला जाता है और इसके बाद हम यह समझेंगे की Potential ट्रांसफार्मर क्या होता है और इसकी संरचना एवं वर्किंग किस प्रकार होती है और इसके लिए Turn Ratio किस प्रकार से निकाला जाता है इस प्रकार हम Current एवं Potential ट्रांसफार्मर दोनों को Detail में समझेंगे तो चलिए अब समझना Start कर देते है Current एवं Potential ट्रांसफार्मर को समझना |
Current ट्रांसफार्मर
Current ट्रांसफार्मर को Short में CT भी कहा जाता है यह एक ऐसा Device होता है जिसका उपयोग करके High वैल्यू की Current को Low वैल्यू की Current में ट्रांसफॉर्मेशन करने के लिए उपयोग किया जाता है अर्थात यह एक ऐसा Device होता है जो High वोल्टेज की करंट को Low वोल्टेज करंट में Transmit करता है जो की ट्रांसमिशन लाइन के द्वारा Transmit होती है | और इसको हमेशा सर्किट के Series में Connect किया जाता है |
अर्थात हम यह कह सकते है की Current ट्रांसफार्मर एक ऐसा Device होता है जो की Secondary Winding में Alternating Current को Produce करने के लिए उपयोग किया जाता है जो की इसके Primary Winding में करंट के Flow होने से उत्पन्न होती है अर्थात जो Secondary Winding में Alternating Current Produce होती है वह हमेशा Primary Winding में करंट के Proportional होती है |
अब जब यह High वोल्टेज करंट Low वोल्टेज करंट में Convert हो जाती है तो इसको किसी भी Instrument या फिर अमीटर की सहायता से मॉनिटर करना आसान हो जाता है इस प्रकार इसे Safely मॉनिटर करना आसान हो जाता है और इस प्रकार यह Current ट्रांसफार्मर बहुत ही उपयोगी होता है |
Current ट्रांसफार्मर की संरचना एवं वर्किंग
अगर हम Current ट्रांसफार्मर की संरचना की बात करें तो इसमें एक Core होता है और प्राइमरी वाइंडिंग एवं सेकेंडरी वाइंडिंग होती है और इस प्रकार जो इसकी Core होती है वह Silicon Steel के Lamination से बनी होती है और इसकी जो प्राइमरी वाइंडिंग होती है वह उस करंट से Connected होती है जिसको Measure करना होता है और यह इस सर्किट की Main Current से ही Connected होती है |
और इसकी जो Secondary वाइंडिंग होती है वह उस Current के Proportional जो Current होती है जिसका मापन करना होता है उससे Connected होती है और फिर इसको किसी Instrument या फिर अमीटर के साथ Connect कर दिया जाता है |
तथा साथ ही साथ इसकी प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग को भी Core एवं आपस में एक दूसरे से भी Insulated किया जाता है जिससे की किसी भी तरह का Short Circuit का खतरा ना हो और इसकी जो प्राइमरी वाइंडिंग होती है वह सिंगल टर्न वाइंडिंग होती है जिसे Bar Primary के नाम से भी जाना जाता है और यह Full Load Current को भी Carry करती है तथा इसकी जो सेकेंडरी वाइंडिंग होती है उसके Number of Turn की संख्या ज्यादा होती है |
और इसका जो Turn Ratio (T.R.) का Formula होता है वह इस प्रकार का होता है –
T.R. = n = Np / Ns = Is / Ip
अब यहाँ पर जो सेकेंडरी वाइंडिंग करंट है उसको इस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है –
Is = Ip (Np / Ns )
जहाँ पर –
n = Number of Turn है
Np = प्राइमरी Number of Turn है
Ns = सेकेंडरी Number of Turn है
Is = सेकेंडरी वाइंडिंग करंट
Ip = प्राइमरी वाइंडिंग करंट
अब हम Potential ट्रांसफार्मर के बारे में समझते है |
Potential ट्रांसफार्मर
Potential ट्रांसफार्मर को Short में PT भी कहा जाता है यह एक ऐसा Device होता है जिसका उपयोग करके High वैल्यू की Potential को Low वैल्यू की Potential में ट्रांसफॉर्मेशन करने के लिए उपयोग किया जाता है अर्थात यह एक ऐसा Device होता है जो High वोल्टेज को Low वोल्टेज में Transmit करता है जो की ट्रांसमिशन लाइन के द्वारा Transmit किया जाता है |
इस प्रकार यह Potential ट्रांसफार्मर वोल्टेज की लिमिट को Step Down कर देता है जिससे की यह एक Safe Limit तक पहुँच जाता है और फिर इसे आसानी से किसी भी Instrument या फिर वोल्टमीटर की सहायता से आसानी से मापा जा सकता है | इस प्रकार इसे एक प्रकार का Step Down ट्रांसफार्मर भी कहा जाता है और इसे Parallel कनेक्शन में कनेक्ट किया जाता है |
Potential ट्रांसफार्मर की संरचना एवं वर्किंग
अगर हम Potential ट्रांसफार्मर की संरचना की बात करें तो इसमें भी एक Core होता है और प्राइमरी वाइंडिंग एवं सेकेंडरी वाइंडिंग होती है लेकिन इसका जो Core होता है उसे इस प्रकार बनाया जाता है की वह Low फ्लक्स Density पर ऑपरेट हो जाए इसका मतलब यह है की एक High Quality का Core इसके लिए बनाया जाता है जिससे की इसके अन्दर जो Magnetising करंट का मान रहता है वह कम से कम हो |
ये तो बात हो गई Core के बारे में अब बात आती है वाइंडिंग की तो इसकी जो प्राइमरी वाइंडिंग होती है उसमे नंबर Of Turn की संख्या बहुत ज्यादा होती है और जो सेकेंडरी वाइंडिंग होती है उसमे नंबर Of Turn की संख्या बहुत कम होती है और इन दोनों के अलावा भी इसमें एक और वाइंडिंग होती है जिसका उपयोग इसमें किया जाता है इसे Co – Axial वाइंडिंग के नाम से जाना जाता है जिसका काम इसके अन्दर उत्पन्न होने वाली Leakage Reactance को कम करना होता है |
इसके अन्दर जो प्राइमरी वाइंडिंग होती है उसको Section में Divide किया जाता है जिससे की इसकी जो Layers होती ही उनके बीच में इंसुलेशन को कम किया जा सकता है इससे यह फायदा होता है की थोड़ी इंसुलेशन Cost को कम किया जा सकता है |
इसकी वर्किंग के दौरान Potential ट्रांसफार्मर को किसी भी सर्किट के Parallel में कनेक्ट किया जाता है किसी पॉवर सर्किट का जिसका Potential मापना होता है उससे Potential ट्रांसफार्मर की प्राइमरी को डायरेक्ट ही कनेक्ट किया जाता है और जो सेकेंडरी वाइंडिंग होती है उसको किसी भी Measuring Instrument या फिर वोल्टमीटर से कनेक्ट कर दिया जाता है |
Potential ट्रांसफार्मर की जो सेकेंडरी वाइंडिंग होती है उसको प्राइमरी वाइंडिंग के मैग्नेटिक सर्किट से Magnetically Coupled किया जाता है इस प्रकार इसकी संरचना एवं वर्किंग होती है |
और इसका जो Turn Ratio (T.R.) का Formula होता है वह इस प्रकार का होता है –
Turn Ratio ( T.R. ) = n = Vp / Vs = Np / Ns
n = Number of Turn है
Np = प्राइमरी Number of Turn है
Ns = सेकेंडरी Number of Turn है
Vs = सेकेंडरी वाइंडिंग वोल्टेज
Vp = प्राइमरी वाइंडिंग वोल्टेज
इस प्रकार हमने समझा की Current एवं Potential ट्रांसफार्मर क्या होते है और Current एवं Potential ट्रांसफार्मर की संरचना और वर्किंग किस प्रकार होती है | तथा साथ ही साथ हमने यह भी समझा की Current एवं Potential ट्रांसफार्मर के लिए Turn Ratio किस प्रकार निकाला जाता है |
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