स्थिर वैद्युुुत
आवेश वस्तुओ का वह गुण है जो विद्युत व चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करते है
जब वस्तुओं को आपस में संपर्क में लाने अथवा रगडने पर उनमे दुसरी हल्की वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण आ जाता है उसे वैद्युत आवेश कहते है घर्षण से प्राप्त इस आवेश को घर्षण विद्युत कहते है तथा जब घर्षण से प्राप्त आवेश एक ही जगह पर स्थित हो तब उसे स्थिर विद्युत कहते है ।
दोनो वस्तुओं पर उत्पन्न आवेश परिमाण में बराबर किन्तु प्रक्रति में असमान होता है।
अमेरिकी वैज्ञानिक फ्रैंकलिन ने बताया कि सजातीय आवेश हमेशा एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है जबकि विजातीय आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते है।
पदार्थ के परमाणु मुख्यत: तीन मूल कणों से मिलकर बनते है जिन्हें इलैक्ट्रान ,प्रोटान व न्युट्रान कहते है। उदासीन अवस्था में परमाणु मे प्रोट्रान व इलेक्ट्रानेां की संख्या बराबर होती है जिससे परमाणुओं के बीच लगने वाले विद्युत बल का मान शून्य होता है।
इलेक्ट्रान और प्रोटान पर आवेश का मान समान तथा प्रक्रति विपरीत होती है ।तथा इनके द्रव्यमान क्रमश: 9.1 x 10-31 किग्रा तथा 1.67 x10-27 किग्रा होता है तथा न्युट्रान का द्रव्यमान प्रोट्रान के द्रव्यमान के लगभग बराबर कुछ अधिक होता है तथा न्युट्रान पर आवेश का मान शून्य होता है ।
आवेश के गुण
- आवेश संरक्षित होते है
- आवेशेां मे क्वांटीकरण का गुण पाया जाता है
- इलेक्टान के आवेश को -e तथा प्रोट्रान के आवेश को +e से प्रदर्शित करते है ।
- e को विद्युत आवेश का मात्रक माना जाता है जिसे मूल आवेश कहते है
- एस आई प्रणाली में e का मान 1.6 x 10-19 कूलाम्ब होता है।
- किसी खोखले चालक में आवेश उसकी सतह पर एकत्रित हेा जाता है।
- यदि वस्तु को आवेशित करने पर उस पर ऋण आवेश होता है तो वस्तु का द्रव्यमान बढ़ जाता है और धन आवेश होता है तो वस्तु का द्रव्यमान घट जाता है
- आवेश अदिश राशि होती है
- आवेश निश्चर होता है
विद्युत क्षेत्र
किसी विद्युत आवेश के चारो ओर का वह क्षेत्र जहा तक अन्य केाई आवेश आकर्षण या प्रतिकर्षण बल का अनुभव करता है विद्युत क्षेत्र अथवा विद्युत बल क्षेत्र कहलाता है
आवेश का S.I मात्रक वोल्ट/मीटर होता है
आवेश से दूरी बडने पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का मान घटती जाती है।
विद्युत बल रेखाऍं
विद्युत बल रेखाऐ वे काल्पनिक रेखाऐ होती है जिन पर एकांक धनावेश गमन करता है।
विद्युत बल रेखाओं के गुण
- विद्युत बल रेखाऐ धनावेश से चलती है तथा ऋणावेश पर समाप्त होती है
- दो विद्युत बल रेखाऐ कभी एक दूसरे को नही काटती ।
- विद्युतक्षेत्र के किसी बिन्दु पर खीचीं गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर धनआवेश पर लगने वाले बल की दिशा को प्रदर्शित करती है
- विद्युत बल रेखाये अपनी लम्बाई के लम्बबत दिशा में दूर हटने का प्रयास करती है ।
वैधुत बल रेखाओ के उपयोग –
विद्युत बल रेखाये के आवेश समूह मे पैदा विद्युत क्षेत्र की थोड़ी जानकारी मिलती है जहाँ विद्युत बल रेखाये बहुत पास- पास होती है वहा विद्युत क्षेत्र की अधिक तीव्रता वह जहां दूर-दूर होती है वहां विद्युत क्षेत्र की तीव्रता कम प्राप्त होती है
वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता
विद्युत क्षेत्र मे रखे एकांक धनावेश पर लगने वाले बल को उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता को प्रदर्शित करता है
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E=F/q
इसका मात्रक न्युटन/कूलाम है तथा यह एक सदिश राशि होती है
वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण
वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण वैद्युत द्विध्रुव के एक आवेश तथा दोनो आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल के बराबर होता है।
यह एक सदिश राशि होती है जिसकी दिशा द्विध्रुव के अक्ष के अनुदिश हेाती है तथा मात्रक कूलाम मीटर होता है
E=qx2l
चालक
वे पदार्थ जो अपने अन्दर से आवेश को आसानी से प्रवाहित होने देते है चालक पदार्थ कहलाते है ठोस पदार्थों की विद्युत चालकता उनमें मौजूद मुक्त इलेक्ट्रानेां की संख्या पर निर्भर करती है धातुओ मे यह संख्या बहुत अधिक 10^29 घन मीटर होती है सबसे अधिक विद्युत चालक चॉदी फिर उसके बाद क्रमश: तॉंबा ,सोना व एल्यूमिनियम की होती है।
सभी धातुऍं लोहा, चादी ,ताबा अम्लीय जल ,जलीय विलयन ,जीवो का शरीर ,प्रथ्वी आदि विद्युत के चालक पदार्थ होते है ताप बडाने पर चालक पदार्थो का प्रतिरोध बडता है जिससे उनकी चालकता घटती है।
अचालक अथवा कुचालक पदार्थ
वे सभी पदार्थ जो अपने अन्दर से आवेश का प्रवाह नही होने देते है कुचालक कहलाते है
जैसे सूखी लकडी, आसुत जल, कॉंच, एबोनाइट, रेशम चीनी ,मिट्टी अधिकांश अधातुऍं।
अर्धचालक
कुछ ऐसे पदार्थ भी होते है जो सामान्य परिस्थितियों में आवेश प्रवाहित नही करते लेकिन कुछ बिशेष परिस्थितियेां में जैसे उच्चताप अथवा अशुद्धियॅॅाॅ मिलाने पर चालक की तरह व्यवहार दर्शाते है तथा आवेश को प्रवाहित करने लगते है ऐसे पदार्थों को अर्धचालक कहते है।अर्धचालक पदार्थो की चालकता ताप बडाने के साथ बढती है तथा ताप के घटाने पर अर्धचालको की चालकता घटती है परमशून्य ताप पर अर्धचालक पदार्थ कुचालक की तरह व्यवहार दर्शाते है।
जैसे सिलिकान जर्मेनियम कार्बन व सेलेनियम आदि
विद्युतीय उपकरणो मे प्रयुक्त होने वाले ट्रांजिस्टर भी अर्धचालको के बनायें जाते है
अतिचालक
अतिचालक वे पदार्थ होते है जो निम्न ताप पर अधिक चालक हो जाते है निम्न ताप पर इनका वैद्युत प्रतिरोध बिल्कुल न के बराबर हो जाता है और ये बिना किसी ऊर्जा का ह्रास के विद्युत का प्रवाह करने लगते है ।
धातुओं में आवेश का प्रवाह मुक्त इलेक्टा्रनो के प्रवाह के कारण तथा द्रवो तथा गैसों में यह आयनों (धन तथा ऋण ) के प्रवाह के कारण होता है।
स्थिर विद्युत प्रेरण
जब किसी अनावेशित चालक के समीप किसी आवेशित चालक को लाने पर अनावेशित चालक के समीप वाले सिरे पर विपरीत आवेश तथा आवेशित चालक से दूर वाले सिरे पर समान प्रक्रति का आवेश उत्पन्न हो जाये तो इस परिघटना को स्थिर विद्युत प्रेरण कहते है। स्थिर विद्युत प्रेरण के प्रभाव से हम वस्तुओं को आवेशित अथवा अनावेशित कर सकते है।
आवेश का प्रष्ठ घनत्व
आवेश का प्रष्ठ घनत्व किसी चालक के इकाई क्षेत्रफल पर मौजूद आवेश की मात्रा के बराबर होता है
आवेश प्रष्ठ घनत्व =आवेश /क्षेत्रफल
अर्थात यह क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है जिससे नुकीले सिरे जिनका क्षेत्रफल कम होता है उन पर आवेश प्रष्ठ घनत्व का मान अधिक होता है
नोट
आवेेेेश प्रष्ठ घनत्व प्रभाव उपयोग करकेे की तडित चालक बनाये जातेे है जाेे कि धातु प्राय: ताॅँबे की एक नुकीले सिरे वाली छड होती है जोकि एक सुचालक तार के माध्यम से भूूूूसंपर्कित होती है तथा भवनों केे ऊपर पडने वाली बिजली को प्रथ्वी मे भेज देती है और भवनो काेे क्षतिग्र्र्र्रस्त होने से बचाती है।
किसी खोखले चालक को जब आवेशित किया जाता है तो आवेश उसके बाहरी प्रष्ठ पर एकत्रित हो जाता है तथा खोखले चालक के अन्दर कोई आवेश प्रवाह नही होता है और वह एक वि़द्युत परिरक्षक की तरह कार्य करता है यही कारण है कि कार से यात्रा करते समय यदि बिजली का आघात होता है यात्री सुरक्षित बच जाते है क्योकि कार के शीशे बन्द होने के कारण वह एक खोखले चालक की तरह व्यवहार करने लगती है ।
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