रेडियोधर्मिता
आवर्त सारणी में परमाणु क्रमांक 82 से ऊपर वाले तत्व रेडियोधर्मी तत्व कहलातेे हैं। रेडियोधर्मी तत्व अस्थिर होतेे है ,तथा अपने आप का अस्तित्व बनाये रखने के लिये लगातार अपने अन्दर से रेडियोधर्मि किरणे अल्फा ,बीटा, और गामा किरणाेें का उत्सर्जन करते रहते है। इन किरणों को बेकुरल किरणे कहा जाता है तथा जो तत्व इस प्रकार की किरणों का उत्सर्जन करते है उन्हे हम रेडियोधर्मी तत्व कहते है। तथा इस सम्पूर्ण घटनाक्रम को रेडियोधर्मिता कहते है।
रेडियोधर्मिता की खोज फ्रांस के वैैज्ञाािनिक बेेेेकुरल ने 1896 मे की थी ।
रेडियोधर्मिता का मात्रक
रेडियोधर्मिता का एस आई पद्धिति मेे मात्रक बेकुरल होता है।
1 बेकुरल = 1क्षय/सेकण्ड
इसके बडे मात्रक क्यूरी और रदरफोर्ड है।
1 क्यूरी =3.62xबेकुरल
तथा 1 रदरफोर्ड =10^6 क्षय/सेकण्ड =10^6 बेकुरल
अर्ध आयुकाल
वह समयान्तराल जिसमे कोेई रेडियोधर्मी तत्व अपनी प्रारंम्भिक मात्रा का आधा हो जायेे उस समयान्तराल को रेडियोधर्मी तत्व का अर्द्धआायुकाल कहा जाता है।अर्द्धआयुकाल का मान अलग-अलग तत्वों के लिये अलग-अलग होता है।
जैसे- यूरेनियम 238 का अर्द्धआयुकाल 4.46 विलिययन बर्ष होता है।इसीप्रकार थोरियम का अर्द्धआयुकाल 1.4x 10^18 बर्ष ,रेडियम का अर्द्धआयुकाल 1950 बर्ष होता है।
रेडियोधर्मी तत्व का नाभिकीय स्थायित्व
रेडियोधर्मी तत्वो के परमाणुओ का आकार बहुुुत ही सूक्ष्म होता है।जिसके कारण प्रोटान प्रोटान के बीच लगने बाला प्रतिकर्षण बल का मान बहुत अधिक होताा है लेकिन नाभिक मे न्यूटा्रन की माैैैजूदगी इस प्रतिकर्षण बल के प्रभाव को कम करती हैै। अत:परमाणु केे नाभिक के स्थयित्व के लिये (n/p) का मान 1-1.6 के बीच होना चाहिये।
यहा ,
n= न्यूट्रान
p=प्रोटान
रेडियोधर्मी तत्वो का तत्वांतरण
किसी रेडियोेधर्मी तत्व रेडियोधर्मी किरणो केे उत्सर्जन के बाद दूसरे तत्व में बदलना ,रेडियोधर्मी तत्व रूपान्तरण कहलाता है।सबसे पहले वैज्ञािनिक सॉडी ने बताया कि तत्वों से रेडियोधर्मी किरणो का निकलना तत्वो के अस्थाई नाभिको का स्थायी नाभिको मे बदलने का परिणाम होता है।तत्वो के रूपांतरण के फलस्वरूप ही समस्थानिको का निर्माण होता है।
जैसे जब यूरेनियम 238 से एक अल्फा कण का उत्सर्जन होता है ताेे बह थोरियम 234 मे परिवर्तन कर लेता है।
अल्फाक्षय ( α -alfa decay)
अल्फा किरणो का अविष्कार हेनरी बेकुलर नेे किया था।ये धनावेशित कण होते है। जब किसी परमाणु के नाभिक से 1 अल्फा कण का क्षरण होता है तो परमाणु के परमाणु भार मेे 4 की कमी तथा उसके परमाणु क्रमांक मे2 की कमी हो जाती हैैै। 1 अल्फा कण हीलियम परमाणु के नाभिक के बराबर होता है।
अल्फा कणो की विशेषताएँ
- अल्फा कणाोो का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु अथवा प्रोटॅान के द्रव्यमान का 4 गुना होता है
- इनका वेग प्रकाश के वेग का 1/10 गुना होता है।
- 1 अल्फा कण का द्रव्यमान 4 इकाई तथा दो इकाई का धनावेश होता हैै।
- अल्फाकणाोंं की आयनन क्षमता सभी तीनो कण अल्फा बीटा और गामा मे सबसे अधिक होती है।
- अल्फा कण विद्युत क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र दोनो मे विक्षेेपित हो जातेे है।
- ये कण धनावेशित हेाने के कारण कैथोड की ओर विचलित हो जाते है।
- अल्फा कण स्फूरदीप्ति की गुण रखते है और कुछ बिशेष पदार्थो जैैैैसे हीरा जिंक सल्फाइड आिदि के ऊपर पडने पर प्रतिदीिपित उत्पन्न करते है
- इन कणो की बेधन क्षमता बहुत कम होती हैये 0.1 मिमि की मोटाई की एल्युमिलियम की चादर को भी नहीं भेद सकते हैैै।
- अल्फाकण फोटोग्राफिक फिल्म को भी प्रभावित करते है।
बीटा कणो का क्षरण
बीटा किरणो की खोज रदरफोर्ड ने की थी। इनकी प्रक्रति ऋणात्मक होती है। बीटा किरणे तीब्र वेग से गतिमान इलेक्ट्रानेा की बनी हेाती है। जब किसी रेडियोधर्मी तत्व से बीटा कण का क्षय होता है। तो उस तत्व मे 1 प्रोट्रान ,1इलेक्ट्रान और 1 एन्टीन्यूट्रीनो आ जाता है। तथा तत्व के परमाणु क्रमांक मे 1 इकाई की ब्रद्धि हो जाती है।
बीटा किरणों की प्रमुख बिशेषतायें निम्न है।
- बीटा किरणो पर 1 इकाई का ऋणात्मक आवेश होता है , और इनका विराम अवस्था में द्रव्यमान शून्य होता है।
- ये प्रक्रति में ऋणात्मक होने के कारण विद्युत क्षेत्र मे एनोड की तरफ विचलित हो जाती है।
- बीटा किरणो की बेधन क्षमता अल्फा किरणो की तुलना में 100 गुना होती है।
- बीटा किरणो की आयनीकरण की क्षमता गामा किरणो की तुलना मे 100 गुना होती है।
- ये किरणे स्फूरदीप्ति प्रभाव उत्पन्न करती है ।
- इनका वेग प्रकाश की चाल से थोडा कम होता है।
- बीटा किरणे विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र दोनों को प्रभावित करती है तथा फोटोग्राफिेक प्लेट को काला कर देती है।
गामा किरणो की विशेषताए
गामा किरणो की खोज बैज्ञानिक मेरी और क्युरी दोनो ने सम्मिलित रूप से की थी।गामा किरणे द्रव्यमान रहित तथा आवेशहीन ऊर्जा के बंडलो से मिलकर बनती है। इनका तरंगदैर्ध्य कम होता है तथा इनकी बेधन क्षमता सर्वाधिक होती है।
- गामा किरणो की आयनन क्षमता बहुत कम होती है।
- इनका वेग प्रकाश की चाल के बराबर होता है।
- इनकी बेधन क्षमता बहुत अधिक होती है ,गामा किरणे 30 सेमी मोटाई की स्टील की चादर को भी भेद सकती है।
- गामा किरणे स्फूरदीप्ति का प्रभाव उत्पन्न करती है।
- इन किरणो पर बिद्युत और चुंबकीय क्षेत्रो का प्रभाव नही पडता है।
- इन किरणो का फोटोग्राफिक प्लेेेट पर प्रभाव सबसे अधिक पडता है।
एटॉमिक मास यूनिट (a.m.u.)
परमाणु द्रव्यमान इकाई उस द्रव्यमान को कहते है जो कार्बन परमाणु के द्रव्यमान के बारहवें भाग के बराबर होता है। इसे a.m.u. से अथवा u से प्रदर्शित करते है।
1 a.m.u.= 1.66033×10^-27 किग्रा होता है जिसकी उर्जा
931 MeV होती है । तथा
1 MeV =1.6×10 ^-13 जूल होता है।
नाभिकीय विखंडन
जब कोई भारी नाभिक टुटकर दो हल्के नाभिको में टूट जाता है तो इस प्रक्रिया को हम नाभिकीय बिखंडन कहते है। सबसे पहले आटोहॉन और स्ट्रांसमैन नामक दो बैज्ञानिकेां ने रेडियोंधमी्र तत्व के नाभिक को तोडने में सफलता प्राप्त की । इन बैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग में यूरेनियम 235 के परमाणु का प्रयोग किया तथा उस पर न्यूट्रानेां की बमबारी की जिससे यूरेनियम 235 टूटकर दो हल्के नाभिको में बट गया तथा इस प्रक्रिया में अत्याधिक मात्रा में ऊर्जा का उत्पादन हुआ। नाभिकीय विखंडन प्रक्रिया में द्रव्यमान की क्षति होती है और यही द्रव्यमान ऊर्जा के रूप में उत्पन्न होता है।
energy
यह नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया दो प्रकार की होती है
1 अनियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया
इस अभिक्रिया को नियंत्रित करना असंभव है । इस श्रंखला अभििक्रया में परमाणुओं की संख्या गुणोत्तर रूप मे क्रम से आगे बढती है । परमाणु बम अनियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया का उदाहरण होती है।
2 नियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया
नियंत्रित श्रंखला अभिकि्या में परमाणु के विखंडन के दौरान उत्पन्न तीन न्युट्रानो में से दो को हम रास्ते में ही रोक लेते है जिससे परमाणु विखंडन की प्रक्रिया नियंत्रित हो जाती है।
नियंत्रित श्रंखला अभिक्रिया का उपयेाग परमाणु भटिटयो में तथा नाभिकीय रियेक्टरों में किया जाता है। प्रथम परमाणु भट्टी केा बैज्ञानिक एनरिको फर्मी ने 1942 में बनाया था।
नाभिकीय संलयन
नाभिकीय संलयन उस अभिक्रिया को कहा जाता है जिसमें दो हल्के नाभिक मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते है इस अभिकि्रया में बहूत अधिक मात्रा में ऊर्जा का उत्पादन होता है। सूर्य तथा तारो में ऊर्जा का स्त्रोत नाभिकीय संलयन अभिक्रिया का ही परिणाम है।
energy
समस्थानिक
एक ही तत्व के समान परमाणु क्रमांक तथा भिन्न भिन्न परमाणु भार वाले तत्वो को उस तत्व के समस्थानिक कहते है रेडियोधर्मी तत्व के वे समस्थानिक परमाणु जो रेडियोधर्मिता का गुण प्रदर्शित करते है रेडियोधर्मी समस्थानिक कहलाते है। इनका प्रयोग क्रषि , चिकित्सा, अभियांत्रिकी , पुरातत्व विज्ञान आदि अनेक क्षेत्रो में किया जाता है।
उदाहरण
- कार्बन 14 का प्रयोग जीवाश्मो की आयु के निर्धारण में किया जाता है।
- रेडियोधर्मी सोडियम 24 का प्रयोग रक्त प्रवाह के वेग को मापने मे किया जाता है।
- आयोडीन 131 का प्रयोग थॉयरॉइड ग्रन्थि का पता लगाने में किया जाता है।
- कोबाल्ट60 का प्रयोग केंसर के उपचार मे किया जाता है
इलेक्ट्रॉन नाभिक में नहीं पाया जाता पर बीटा क्षय के समय नाभिक से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन का कारण क्या है
जब किसी तत्व का बीटा कणो के उत्सर्जन से विघटन होता है अर्थात किसी नाभिक से एक इलेक्ट्रॉन तथा एक पॉजिट्रॉन होता है तो एक नए रासायनिक तत्व की उत्पत्ति होती है तब इसे बीटा क्षय कहते हैं बीटा विघटन में तत्व का परमाणु क्रमांक एक बड़ या घट जाता है जबकि तत्व में परमाणु भार में अंतर नहीं होता बीटा कणों पर आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश के मान के बराबर होता है यह आवेश धनात्मक या ऋण आत्मक हो सकता है धनात्मक आवेश के बीटा कण को पॉजिट्रॉन कहते हैं तथा ऋण आत्मक आवेश के वितरण को इलेक्ट्रॉन कहते हैं बीटा कणो का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के बराबर होता है
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