फ्यूल पम्प गाड़ियों मैं लगी एक डिवाइस होती है जो फ्यूल को इंजन तक पहुंचाने में मदद करती है। फ्यूल पम्प को या तो फ्यूल टैंक के अंदर या इंजन के ऊपरी भाग( इनलेट वाल्व या कार्बोरेटर) के पास लगाया जाता है। फ्यूल पम्प फ्यूल के प्रेशर को बढ़ा देता है जिससे फ्यूल एक निर्धारित प्रेशर के साथ फ्यूल लाइन में प्रवेश करता है। प्रेशर बढ़ जाने के कारण फ्यूल का बहाव निरंतर और दिशा विशेष हो जाता है। अगर फ्यूल पम्प निर्धारित प्रेशर से ज्यादा प्रेशर बना देता है तो इंजन में फ्यूल की मात्रा ज्यादा हो जाती है जिसके कारण इंजन में इनकंप्लीट कॉम्बस्शन(फ्यूल का पूरी तरीके से उपभोग ना हो पाना)होता है वहीं अगर फ्यूल पम्प निर्धारित प्रेशर से कम प्रेशर बनाता है तो इंजन में फ्यूल की मात्रा कम हो जाती है जिसके कारण इंजन में मिस फायर (फ्यूल का न जल पाना) होता है|
फ्यूल पम्प के प्रकार
कार्य संचालन के आधार पर फ्यूल पम्प का वर्णन किया जाता है।
मैकेनिकल फ्यूल पम्प
मैकेनिकल फ्यूल पम्प वह पम्प होते हैं जिनको चलाने के लिए मशीन के द्वारा ऊर्जा दी जाती है। इन पम्प में फ्यूल का प्रेशर 40–100 psi तक बढ़ाया जा सकता है। मैकेनिकल फ्यूल पम्प मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं डायाफ्राम टाइप पम्प और प्लंजर टाइप पम्प।
डायाफ्राम(Diaphragm) टाइप पम्प
डायाफ्राम पम्प में फ्यूल स्टोरेज का आयतन डायाफ्राम प्लेट के द्वारा कम व ज्यादा करके फ्यूल प्रेशर को कम व ज्यादा किया जाता है। डायाफ्राम के मोशन को कैम के रोटेशन के द्वारा ऑपरेट किया जाता है। जब आयतन बढ़ता है तो पम्प के अंदर प्रेशर कम हो जाता है जिसके कारण फ्यूल इनलेट वाल्व के द्वारा पम्प में आता है और जब आयतन कम होता है या घटता है तो पम्प के अंदर प्रेशर बढ़ जाता है जिसके कारण फ्यूल आउटलेट वाल्व के द्वारा फ्यूल लाइन में जाता है। इनलेट व आउटलेट वाल्व एक निर्धारित दिशा में फ्यूल का प्रवाह कराते है।
प्लंजर(Plunger)टाइप पम्प
प्लंजर टाइप पम्प में एक प्लंजर होता है जो पिस्टन की तरह काम करता है। प्लंजर के मोशन को हम स्प्रिंग और केम रोटेशन से ऑपरेट करते हैं। प्लंजर जब अपने बॉटम डेट सेंटर या निचले छोर पर होता है तो इनलेट पोर्ट के द्वारा फ्यूल का प्रवेश पम्प में होता है। जब प्लंगर बॉटम डेड सेंटर से टॉप डेड सेंटर(ऊपरी छोर) की ओर जाता है तो इनलेट पोर्ट प्लंजर से बंद हो जाता है व फ्यूल कंप्रेस होकर आउटलेट पोर्ट की मदद से फ्यूल लाइन में चले जाता है।
इलेक्ट्रिक फ्यूल पम्प
इलेक्ट्रिकल फ्यूल पम्प को करंट और इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल यूनिट के द्वारा ऑपरेट किया जाता है। इलेक्ट्रिकल पम्प मैकेनिकल पम्प की तुलना में बेहतर होते हैं और फ्यूल की खपत को कम करते हैं। इन फ्यूल पम्प में फ्यूल का प्रैशर 400–2000 psi तक बढ़ाया जा सकता है।
एस.यू(S.U) इलेक्ट्रिक फ्यूल पम्प
इस फ्यूल पम्प में डायाफ्राम के मोशन के द्वारा फ्यूल के प्रेशर को बढ़ाया जाता है डायाफ्राम के मोशन को सोलेनॉयड और इलेक्ट्रिक करंट के द्वाइस फ्यूल पम्प में डायाफ्राम के मोशन के द्वारा फ्यूल के प्रेशर को बढ़ाया जाता है डायाफ्राम के मोशन को सोलेनॉयड और इलेक्ट्रिक करंट के द्वारा ऑपरेट किया जाता है। सोलेनॉइड में इलेक्ट्रिक करंट जाने पर सोलेनाइड मैग्नेटिक फील्ड जनरेट करता है मैग्नेटिक फील्ड के कारण आर्मेचर ऊपर की ओर ता है जिसके कारण फ्यूल स्टोरेज का वॉल्यूम बढ़ जाता है और प्रेशर कम हो जाता है जिसके कारण फ्यूल इनलेट वाल्व के द्वारा सिविल स्टोरेज एरिया में आ जाता है आर्मेचर पुश रोड व स्प्रिंग की सहायता से जुड़ी हुई रहती है आर्मेचर के ऊपर आ जाने के कारण सोलेनाइड का कनेक्शन ब्रेकिंग प्वाइंट पर ब्रेक हो जाता है जिसके कारण उत्पन्न हुई मैग्नेटिक फील्ड खत्म हो जाती है मैग्नेटिक फील्ड खत्म होने के कारण स्प्रिंग के फोर्स से आर्मेचर वापस नीचे की ओर आ जाता है। आर्मेचर नीचे आने के कारण फ्यूल स्टोरेज एरिया का वॉल्यूम कम हो जाता है वह प्रेशर बढ़ जाता है प्रेशर बढ़ जाने के कारण फ्यूल आउटलेट वॉल्व के द्वारा फ्यूल लाइन में चले जाता है। आर्मेचर के नीचे आ जाने के कारण सोलेनाइड का कनेक्शन स्वत ब्रेकिंग प्वाइंट से जुड़ जाता है व मैग्नेटिक फील्ड जनरेट हो जाती है। इस प्रकार से यह साइक्लिक प्रक्रिया चलती रहती है।
हाई प्रेशर फ्यूल पम्प
हाई प्रैशर फ्यूल पम्प का इस्तेमाल फ्यूल के प्रेशर को अत्यधिक बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है इस प्रकार के पम्प का इस्तेमाल उन गाड़ियों में किया जाता है जिनमें 4 या 4 से ज्यादा सिलेंडर वाले इंजन लगे होते हैं। इनको कॉमन रेल फ्यूल पम्प भी कहा जाता है। इन पंपों में फ्यूल का प्रेशर 30,000 पीएसआई तक बढ़ाया जा सकता है।
उपयोग
फ्यूल पम्प का उपयोग मुख्यतः ऑटोमोबाइलस में किया जाता है। फ्यूल पम्प फ्यूल को फ्यूल टैंक से आई.सी (i.c)इंजन में पहुंचाने के काम में आता है। पेट्रोल इंजन में फ्यूल पम्प फ्यूल को पेट्रोल टैंक से कार्बोरेटर तक पहुंचाता है वही डीजल इंजन में फ्यूल पम्प फ्यूल को डीजल टैंक से इंजेक्टर तक पहुंचाता है। कार्बोरेटर की तुलना में इंजेक्टर के लिए फ्यूल का प्रेशर ज्यादा चाहिए होता है। नई पेट्रोल गाड़ियों में भी आजकल इंजेक्टर का प्रयोग होता है। फ्यूल पम्प को या तो फ्यूल टैंक के अंदर फिट किया जाता है या कार्बोरेटर या इंजेक्टर के पास फिट किया जाता है। फ्यूल पम्प को इंजन के पास फिट करने के कारण इंजन की गर्मी से फ्यूल के वाष्पीकरण की समस्या होती है जिसके कारण फ्यूल पम्प को कार्य करने में कठिनाई होती है। फ्यूल पम्प को फ्यूल टैंक के अंदर फिट करने पर फ्यूल के वाष्पीकरण की समस्या नहीं होती है मगर फ्यूल लाइन में कभी लीकेज हो जाने पर फ्यूल बहुत अधिक प्रेशर के साथ फैलता है जोकि जोखिम भरा हो सकता है।
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