आज के इस article मे हम हम प्रत्यास्थता क्या है , प्रत्यास्थता के उदाहरण, प्रत्यास्थता गुण के आधार पर वस्तुओ के प्रकार , प्रत्यास्थता का कारण, प्रत्यास्थता की सीमा, प्रत्यास्थ उत्तर प्रभाव के बारे मे विस्तार से जानेंगे
प्रत्यास्थता –
जब किसी वस्तु या पदार्थ पर कोई बाह्य बल आरोपित किया जाता है तो उस वस्तु के मे विकृति उत्पन्न हो जाती है परंतु जैसे ही हम उस वस्तु पर बाह्य बल हटाया जाता है वह अपने पहले वाली स्थिति में आ जाती है
अर्थात वस्तु का वह गुण जिससे उस पर बाह्य बल हटाने पर वह पुनः अपनी प्रारंभिक आकार मे आ जाती है प्रत्यास्थता कहलाता है
प्रत्यास्थता के उदाहरण –
- हम कोई हवा से भरा हुआ गुब्बारा लेते हैं अब हम इस गुब्बारे को अपने दोनों हथेलियों के बीच रखकर इस पर थोड़ा बल लगाते हैं तो हम देखते हैं गुब्बारे के आकार में परिवर्तन आ जाता है परंतु जैसे ही हम इस पर हम अपनी हथेलियो के द्वारा लगाए गए बल को हटाते हैं वह अपने प्रारंभिक आकार में आ जाता है
- माना हम कोई स्प्रिंग लेते हैं अब हम स्प्रिंग के दोनों सिरों को अपने हाथों से पकड़ कर खींचते हैं तो हम देखते हैं स्प्रिंग की आकृति में परिवर्तन आ जाता है परंतु जैसे ही हम उसके दोनों सिरों को छोड़ते हैं तो वह अपनी पहली वाली प्रारंभिक स्थिति में आ जाती है
प्रत्यास्थता में वस्तु पर जो बाह्य यह बल लगाया जाता है उसे विरूपक बल कहते हैं
विरूपक बल – यह वह बाह्य बल होता है जिसको किसी वस्तु पर लगाने पर वह इसके आकर मे परिवर्तन ला देता है
प्रत्यास्थता गुण के आधार पर वस्तुओ के प्रकार –
प्रत्यास्थता के आधार पर वस्तुओ के तीन प्रकार होते है
1. प्रत्यास्थ 2. दृढ़ 3. प्लास्टिक
1. प्रत्यास्थ ( Elastic) –
प्रत्यास्थ ( Elastic) – यह वे वस्तुएं होती है जिन पर विरूप बल को हटाने पर पूर्ण रूप से अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाती है
प्रकृति में कोई भी वस्तु पूर्णता प्रत्यास्थ नहीं होती
2.दृढ़ (Rigid) –
यह वे वस्तु होती है जिन पर विरूपक बल लगाने पर और के आकार में कोई परिवर्तन नहीं होतादृढ़ वस्तुओं की प्रत्यास्थता अनंत होती है
3.प्लास्टिक (plastic) –
यह वे वस्तु होती है जिन पर विरूपक बल हटाने पर अपनी प्रारंभिक स्थिति में नही लौट पाती है जैसे – मोम
प्रत्यास्थता का कारण (cause of Elasticity) –
ठोसो मे अणु एक विशेष व्यवस्था में व्यवस्थित होते हैं जिसमें एक अणु अपने पास वाले दूसरे अणु पर जब ठोस पर कोई बाह्य बल ( विरूपक बल) नही लाया जाता है तो ये साम्य अवस्था में रहते हैं परंतु जब वस्तु पर विरूपक बल लाग्या जाता है तो अणु एक दूसरे से पास पास या दूर दूर चले चले जाते जाते है जिसे वस्तु की आकृति मे परिवर्तन आ जाता हैठोस मे इस विरूपक बल का विरोध करने के लिए एक अन्य बल प्रत्यानयन बल उत्पन्न होता है जो वस्तुओं को अपनी प्रारंभिक स्थिति में ले जाने का प्रयास करता है जब वस्तु पर से विरूपक बल हटा लिया जाता है तो वस्तु प्रत्यानयन बल के कारण अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाती है
प्रत्यास्थता की सीमा (limit of Elasticity) –
साधारणतः हम किसी वस्तु पर विरूपक बल लगाते हैं तो विरूपक बल हटाने के बाद वह वस्तु अपने प्रारंभिक स्थिति में आ जाती हैं परंतु यदि हम विरूपक बल का मान इतना बड़ा दे की वस्तु अपने प्रारंभिक स्थिति में ना आ सके अर्थात वस्तु का प्रत्यास्थता का गुण नष्ट जाता है ऐसे ही हम प्रत्यास्थता सीमा कहते हैं
प्रत्यास्थ थकान/ प्रत्यास्थ श्रांति (Elasticity fatigue) –
जब कोई वस्तु काफी समय से दोलन कर रही होती है और अब उस वस्तु को किसी अन्य वस्तु के साथ समानआयाम से दोलन कराया जाता है तो यह वस्तु दूसरी वस्तु के सापेक्ष दोलन जल्दी समाप्त कर देती हैं यदि इस वस्तु को थोड़ा आराम दिया जाए तो यह पुनः अधिक देर के लिए दोलन करने के लिए सक्षम हो जाती है वस्तु की इस थकान को प्रत्यास्थ थकान/ प्रत्यास्थ श्रांति कहते है
प्रत्यास्थ उत्तर प्रभाव (Elastic after effect) –
जब किसी वस्तु पर बाह्य बल लाया जाता है तो उस वस्तु के आकर मे परिवर्तन आ जाता है परंतु जैसे ही उस बल को हटाया जाता है तो वस्तुएं अपनी प्रारंभिक अवस्था में आने के लिए कुछ समय लेती है इस समय पश्चता को ही प्रत्यास्थ उत्तर प्रभाव कहा जाता है
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