आज के article मे हम ऊष्मा इंजन के बारे मे चर्चा करेंगे की ऊष्मीय इंजन क्या होता है, ऊष्मा इंजन का सिद्धांत, संरचना, ऊष्मा इंजन की कार्यविधि, ऊष्मा इंजन की दक्षता, उष्मा इंजन के प्रकार इन सब टोपिक् को हम सरल व आसान भाषा मे समझने की कोशिश करेंगे
ऊष्मा इंजन (Heat Engine) –
ऊष्मीय इंजन वह युक्ति है जो ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा मे परिवर्तित कर देती है
उदाहरण – पेट्रोल इंजन ,डीजल इंजन
सिद्धांत (principle) –
कोई निकाय जिसके अलग अलग हिस्से ( भाग ) अलग अलग तापो पर होते है वे तापीय साम्य अवस्था को ग्रहण करने की चेष्टा करते है ऊष्मीय इंजन इसी सिद्धांत पर कार्य करता है
संरचना (construction) –
ऊष्मीय इंजन के तीन भाग होते है जो निम्न प्रकार है –
ऊष्मा स्रोत (Heat source) –
यह एक ऐसा ऊष्मा का भंडार होता है जिसका ताप बहुत अधिक होता है व इसकी ऊष्मा धारिता अनन्त होती है जिस से इस से ऊष्मा लेने पर भी इसके ताप पर कोई प्रभाव न पड़े
यांत्रिक व्यवस्था व कार्यकारी पदार्थ(mechanical arrangement and working substance) –
ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा मे परिवर्तित करने के लिए एक यांत्रिक व्यवस्था होती है जिसमें एक खोकला सिलेंडर लेते है जो पिस्टन युक्त होता है इस सिलेंडर मे ही कार्यकारी पदार्थ को रखा जाता है यह कार्यकारी से ऊष्मा ग्रहण कर पिस्टन को गति देता है सिलेंडर की नीचे की तली ऊष्मा की सुचालक व बाकी का हिस्सा कुचालक होता है कार्यकारी पदार्थ के रूप मे सैद्धांतिक रूप से आदर्श गैस बल्कि वास्तविकता में इसमें वायु भाप का उपयोग किया जाता है
सिंक (Sink) –
ऊष्मा सिंक भी ऊष्मा भंडार ही होता है इसका ताप ऊष्मा स्रोत के ताप से बहुत ही कम होता है परंतु इसकी ऊष्मा धारिता अनन्त होती है जिस से अनावश्यक ऊर्जा को बाहर निकालने पर भी इसकी ऊष्मा नियत बनी रहे
ऊष्मा इंजन की कार्यविधि –
ऊष्मा इंजन मे कार्यकारी अत्यधिक ताप T₁K पर ऊष्मा स्रोत से Q₁ ताप ग्रहण करता है जिसका कुछ भाग यात्रिक व्यवस्था मे कार्य W मे खर्च हो जाता है और बची हुई ऊष्मा Q₂ ऊष्मा सिंक के द्वारा कम ताप T₂K पर बाहर निकाल दी जाती है और कार्यकारी पदार्थ अपनी पहले वाली अवस्था मे आ जाता है इस प्रकार यह चक्र चलता रहता है यह प्रक्रम कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद अपनी पहले वाली अवस्था मे आ जाता है
ऊष्मा इंजन की दक्षता (Efficiency of heat engine) –
किसी भी इंजन की यांत्रिक व्यवस्था के द्वारा किया गया कार्य
व इस कार्य को करने मे ऊष्मा स्रोत द्वारा ली गयी ऊष्मा के अनुपात को ऊष्मा इंजन की दक्षता कहते है
ऊष्मा इंजन की दक्षता को η प्रदर्शित करते हैं
ऊष्मा इंजन की दक्षता = किया गया कार्य / ग्रहण की गयी ऊष्मा
η = W/Q₁
माना चक्रीय प्रक्रम मे कार्यकारी पदार्थ ऊष्मा स्रोत से Q₁ ऊष्मा ग्रहण करता है व Q₂ ऊष्मा ऊष्मा सिंक त्याग देता है तो कार्यकारी पदार्थ के द्वारा ग्रहण के की ऊष्मा की मात्रा Q₁ – Q₂ होती है कार्यकारी पदार्थ अपने पहले वाली अवस्था में आ जाता है अर्थात आंतरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता
ऊष्मागति के प्रथम नियम से –
ΔQ = dU + ΔW
(Q₁ -Q₂) = 0+W
W = (Q₁ -Q₂)
ऊष्मा Q₁ और Q₂ व कार्य W इन सभी का मात्रक एक ही होता है
उष्मा इंजन की दक्षता ( η ) = (Q₁ -Q₂)/Q₁
η = 1 – Q₂/Q₁
ऊष्मा इंजन की प्रतिशत दक्षता η = (1 – Q₂/Q₁) ×100
उष्मा इंजन के प्रकार ( Types of Heat Engines) –
ऊष्मा इंजन के मुख्य रूप से दो प्रकार होते है
- बाह्य दहन इंजन
- अन्तर्दहन इंजन
बाह्य दहन इंजन (External Combustion Engine) –
इन इंजनो मे कार्यकारी पदार्थ के रूप में जल का उपयोग किया जाता है इन इंजनो के बाहर एक बॉयलर मे ऊष्मा उत्पन्न कर कार्यकारी पदार्थ को दी जाती है और कार्यकारी पदार्थ भाप मे बदल जाता है इन इंजनो की दक्षता 12 – 16% तक होती है
उदाहरण – भाप इंजन
अन्तर्दहन इंजन (Internal Combustion Engine) –
इन इंजनो मे कार्यकारी पदार्थ के रूप में गैस, डीजल, पेट्रोल का उपयोग किया जाता है इन इंजनो के अंदर ही कार्यकारी पदार्थ का दहन होने से ऊष्मा प्राप्त होती है
उदाहरण – पेट्रोल इंजन ,डीजल इंजन
पेट्रोल इंजन की दक्षता 26% व डीजल इंजन की दक्षता 40% होती है
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