इस पेज पर आवर्ती गति,सरल लोलक ,दोलन गति ,तरंग गति ,सेकंड लोलक सरल आवर्त गति,आवर्तकाल,प्रभावी लम्बाई आदि की परिभाषाएं सूत्र एवम प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्व पूर्ण बिंदु है और सभी की जानकरी डिटेल में है पूरा page पड़िए
आवर्ती गति
जब कोई वस्तु एक निश्चित पथ पर गतिमान हो तथा T एक निश्चित समय अंतराल के बाद बार-बार अपनी पूर्व गति को दोहराती है तो इस प्रकार की गति केा आवर्ती गति कहते है।
वस्तु के द्वारा लिया गया समय अंतराल जिसमें वह वस्तु अपनी पूर्व गति को दोहराती है उसे हम वस्तु का आवर्तकाल कहते है। इसे T से दर्शाते है ।
उदाहरण
- प्रथ्वी का सूर्य के चारो ओर परिक्रमा करने में 365.5दिन का समय लगता है तथा इतने समय अंतराल के बाद अपनी पूर्व गति को दोहराती है । अत: 365.5 दिन उसका आवर्तकाल है
- घडी की सुईयों की गति व घडी के पेण्डुलम की गति भी आवर्ती गति का उदाहरण है
- झूले में झूलना ओर अणुओं में परमाणुओं के कम्पन भी आवर्ती गति है
- ह्रदय का धडकना भी आवर्ती गति होती है
- पृथ्वी की अपनी अक्ष के परितः घूमने की गति
- सरल लोलक के गोलक की गति
- आवर्ती गति में यह जरूरी नहीं है कि वस्तु केवल वृत्ताकार मार्ग पर गति करें, आवर्ती गति में बस्तु का पथ वृत्तीय ,सरल रेखीय या फिर वर्कीय भी हो सकता है
काम्पनिक गति या दोलन गति
काम्पनिक गति में वस्तु अपनी साम्य स्थिति के दोनो तरफ इधर-उधर गति करती है तो पिण्ड की गति दोलनी अथवा काम्पनिक गति कहलाती है ।
जैसे दीवार घडी में पेण्डुलम की गति , सिलाई मशीन में सुई की गति , सरल लोलक की गति , स्प्रिंग में लटके पिण्ड को थोडा नीचे खीच देने पर लोलक के द्वारा की गई गति दोलन गति या कम्पन गति का उदाहरण है
साम्य स्थिति :- साम्य स्थिति से तात्पर्य ऐसी अवस्था है जिसमें कोई वस्तु किसी निश्चित बिन्दु के इधर-उधर ,ऊपर नीचे अथवा आगे पीछे दोलन गति करती है तो वह वस्तु की साम्य स्थिति या माध्य स्थिति कहलाती है। इस स्थिति में वस्तु अपनी साम्य स्थिति से थेाडा आगे जाती है फिर उसी स्थिति लौटकर वापस आती है तथा फिर पीछे जाती है । यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु :-
- प्रत्येक दोलन अथवा कम्पन गति आवश्यक रूप से आवर्ती गति होती है लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी आवर्ती गति दोलन गति हो । जैसे- चन्द्रमा का प्रथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाना आवर्ती गति होता है लेकिन काम्पनिक गति नहीं क्योंकि चन्द्रमा अपनी पूर्व गति केा बार – बार दोहराता रहता है किन्तु वह अपनी साम्य स्थिति के इधर-उधर गति नहीं कर रहीं है ।
- अत: आवर्ती गति का दोलनी गति होने के लिये साम्य स्थिति का होना आवश्यक है।
- दोलन या कम्पन गति करते समय वस्तु पर एक बल कार्य करता है जिसकी दिशा हमेशा साम्य स्थिति के ओर होती है जिसे हम प्रत्यानयन बल कहते है । इसके फलस्वरूप वस्तु में त्वरण उत्पन्न होने लगता है ।तथा वह वस्तु कम्पन करने लगती है ।
सरल लोलक (पेण्डुलम)
शब्द पेण्डुलम लेटिन भाषा के शब्द पेण्डूस से बना है जिसका अर्थ होता है ‘लटकना’।
सरल लोलक एक ऐसी युक्ति है जिसमें किसी वस्तु के बिन्दु आकार के भारी कण को पूर्णत: लचकदार और अवितन्य डोरी कें सहारे बांधकर किसी सख्त आधार से लटकाया जाये ओर घर्षण रहित दोलन की व्यवस्था की जाये तो इस सम्पूर्ण व्यवस्था को सरल लोलक कहा जाता है।
यह एक आदर्श संकल्पना होती है लेकिन व्यवहार में इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि डोरी का स्वंय का कुछ न कुछ भार तो अवश्य होता है तथा पूर्णत: घर्षण रहित विन्दु मिलना भी असंभव है ।इस युक्ति में पेन्डुलम को स्वतंत्र रूप से दोलन करने की व्यवस्था की जाती है । इसमें पेण्डुलम को अपनी माध्य स्थिति से थोडा सा बिस्थापित करके छोड दिया जाता है । जिससे इस पर एक प्रत्यानयन बल कार्य करने लगता है जो इसे इसकी पुरानी स्थिति माध्य स्थिति में रखने का प्रयास करता है
जिसके कारण यह फिर अपनी माध्य स्थिति के दोनो ओर गति करने लगता है । इसे एक पूरा चक्कर लगाने में लिया गया समय इसका आवर्तकाल कहलाता है तथा जिस बिन्दु के सापेक्ष इसे घुमाया जाता है उसे हम निलम्वन बिंदु कहते है।
उपयोग:-
सरल लोलक का उपयोग समय गणना के लिये पेण्डुलम घडी बनाने मे, एसीलेरोमीटर , भुकम्पमापी आदि मे किया जाता है
सरल आवर्त गति से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाये ( some important diffinitions related to S. H. M.)
प्रभावी लंबाई :-
निलंबन बिंदु से गोलक के गुरूत्व केन्द्र तक की दुरी को हम लोलक की प्रभावी लंबाई कहते है। प्रभावी लंबाई का मात्रक मीटर,सेमी या मिमी होता है ।
आवर्तकाल:-
सरल लोलक को एक दोलन पूरा करने में लिया गया समय उसका आवर्तकाल कहलाता है । आवर्तकाल की इकाई सेकंड होती है ।
आवर्तकाल
आयाम:-
सरल लोलक का अपनी माध्य स्थिति से होने बाले अधिकतम विस्थापन को उसका आयाम कहा जाता है।
इसका मात्रक मीटर ,सेमी , या मिमी होती है।
आव्रत्ति :-
दोलन करने वाली कोई वस्तु 1 सेकण्ड में जितने दोलन या चक्कर पूरा करती है। उसे हम उसकी आव्रत्ति कहतें है ।
आव्रत्ति का मात्रक हर्टज होता है।इसे n से प्रदर्शित करते है।
आव्रत्ति (n) =1/T
रेडियो तरंगों के अविष्कारक हैरिक रुडोल्फ हर्ट्ज के नाम पर पर आवृत्ति का मात्रक हर्ट्ज़ रखा गया है
कालांतर (phase difference) –
साम्य स्थिति से सरल आवर्त गति कर रहे दो कणो के अंतर को कालांतर कहते है
कला कोण (phase Angle) –
वह राशि जिसके द्वारा कम्पित कण की साम्य स्थिति से किसी क्षण की स्थिति या गति की अवस्था को व्यक्त करते है कला कोण कहलाती है
कोणीय आवर्ती (Angular frequency) –
किसी कण के प्रति sec. कला कोण मे होने वाले परिवर्तन को कोणीय आवर्ती (ω) कहते है
सेकण्ड लोलक:-
सेकण्ड लेालक का कार्य सरल लोलक के समान ही होता है । केवल आवर्तकाल इसका अचर रहता है। सेकंड लोलक वह लोलक होता है जिसे अपना एक दोलन पूरा करने में 2 सेकंड का समय लगता है । इसे 1 सेकंड का समय एक दिशा में अधिकतम दूरी तक जाने मे तथा माध्य स्थिति में आने मे लगता है तथा अगला एक सेंकंड उस माध्य स्थिति के दूसरी तरफ अधिकतम दुरी तक जाने तथा बापस आने में लगता है । इसकी आव्रत्ति ½ सेकंड होती है।
सेकण्ड लोलक का उपयोग समय गणना के लिये , मोसम विज्ञान मे किया जाता है ।
सरल आवर्त गति : –
सरल आवर्त गति एक विशेष प्रकार की गति होती है जिसमें कोई वस्तु अपनी माध्य स्थिति के दोनों ओर सरल रेखा में दोलन गति करती है । सरल आवर्त गति में पिण्ड पर कार्यरत प्रत्यायन बल तथा इसका त्वरण साम्य स्थिति से कण के विस्थापन के अनुत्क्रमानुपाती होता है।
सरल आवर्त गति विशेषताये-
- सरल आवर्त गति में जब केाई पिण्ड अपनी माध्य स्थिति से विस्थापित किया जाता है तो इसके ऊपर एक प्रत्यानयन बल कार्य करने लगता है जिसके परिणामस्वरूप इसकी गति में वृद्धि होती है ,तथा वह अपनी माध्य स्थिति पर वापस आकर त्वरित गति करता रहता है
- अपनी माध्य स्थिति के दोनो तरफ जब पिण्ड अपनी माध्य स्थिति के समीप आता है तो प्रत्यानयन बल का मान घट जाता हैा तथा माध्य स्थिति पर कुल प्रत्यानयन बल का मान खत्म हो जाता है।
- यदि तंत्र में कोई ऊर्जा हानि ना हो तो लगातार अनंत समय तक गति करता रहेगा। इसलिये हम कह सकतें है कि सरल आवर्त गति एक दोलनी गति होती है
सरल आवर्त गति के उदाहरण –
सरल आवर्त गति के कुछ महत्वपूर्ण Example इस प्रकार है
एक समान व्रत्तीय गति सरल आवर्त गति का उदाहरण है
सरल लोलक तथा सेकण्ड लोलक की गति भी सरल आवर्त गति होती है।
सरल आवर्त गति का मान आयाम तथा गुरूत्वीय त्वरण पर निर्भर नहीं करता है।
आवर्त गति दो प्रकार की होती है
- रैखिक सरल आवर्त गति
- कोणीय सरल आवर्त गति
तरंग गति:-
किसी माध्यम में उत्पन्न विक्षोभ को तरंग कहते है । जब कोई लहर अथवा तरंग किसी निश्चित चाल से आगे बढती है तो इस प्रकार की गति को हम तरंग गति कहते है।
जब हम किसी तालाब के शांत जल में पत्थर को फेंकतें है तो जिस स्थान पर पत्थर गिरता है वह उस स्थान पर एक विक्षोभ उत्पन्न करता है जिससे उस स्थान का जल ऊपर व नीचे केा होने लगता है तथा अपने चारों ओर एक व्रत्तीय पथ का निर्माण करते हुए आगे को बडता है । यह बिक्षोभ का आकार इसके केन्द्र से किनारे की तरफ फैलता जाता है ।
क्योंकि उर्ध्वाधर दिशा में गतिमान जल के अणु अपने समीपवर्ती जल के अणुओं को भी अपने विक्षोप के प्रभाव में लेकर उन्हें गतिमान बना देते है। और वे इस प्रकार श्रखलाबद्ध होकर विक्षोप को आगे बढाते जाते है जो हमे लहरों की श्रखला के रूप में दिखाई देता है । इस प्रकार विक्षोप के आगे बढने की प्रक्रिया को ही हम तरंग गति कहते है ।
तरंग गति का एक अन्य उदाहरण के अनुसार जब हम किसी लम्वी रस्सी को एक सिरे को बांधकर दूसरे सिरे को हाथ में पकडकर उपर नीचे को झटका दिया जाता है तो हमे रस्सी में कुछ श्रंग ओर गर्त बनते दिखाई देते है इसमें भी ये विक्षोभ तरंग आगे बढतें हुए दिखाई देते है जो कि तरंग गति का हि एक रूप है।
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